आर्थिक स्थिति एवं धार्मिक स्थिति


आर्थिक स्थिति:

۞    ऋग्वेद काल में आर्यों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन था। ऋग्वेद सभ्यता ग्रामीण सभ्यता थी।
۞    पशु ही सम्पत्ति की वस्तु समझे जाते हैं।
۞    पशु ही सम्पत्ति की वस्तु समझे जाते हैं।
۞    गाय को अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। गाय से संबंधित शब्दों का प्रयोग हुलता से किया जाता था जैसे श्गविष्टिश् का प्रयोग युद्धके लिए, श्गोधूलिश् का प्रयोग समय बतलाने के लिए तथा श्गोमतश् का प्रयोग धनी व्यक्ति के लिए किया जाता था।
۞    इस काल के लोग लोहे से अपरिचित थे।
۞    कृषि कार्यों की जानकारी लोगों को थी तथा यव (जौ) इस काल की एकमात्रा फसल थी।
۞    अयस (तांबा) इस काल की मुख्य धातु थी।
۞    इस काल के प्रमुख व्यवसायियों में तक्षा (बढ़ईद्धए धातुकर्मी, स्वर्णकार, चर्मकार, वाय (जुलाह) तथा कुंभकार (कुकाल) थे।
۞    इस काल में व्यापार पणि लोगों के हाथ में था।
۞    गाय मूल्य की प्रामाणिक इकाई थी। निस्क जो सोने का एक प्रकार का हार होता था, भी लेन-देन का साधन था।



धार्मिक स्थिति:

۞    ऋग्वेद आर्य बहुदेववादी होते हुए भी ईश्वर की एकता में विश्वास करते थे।
۞    इस काल में लोगों ने प्राकृतिक शक्ति का मानवीकारण कर पूजा की।
۞    यास्क द्वारा ऋग्वेद काल के 33 देवताओं का उल्लेख किया गया है।
۞    ऋग्वैदिक आर्यों की देवमंडली तीन भागों में विभाजित थी-अंतरिक्ष के देवता-इंद्र, रुद्र, मरूत, वात्, पर्जन्य, यम, प्रजापति एवं आदिति।
۞    आकाश के देवता-द्यौंस, सूर्य, सवितृ, मित्रा, तरुण, पूषण, विष्णु, उषा तथा अश्विन।
۞    पृथ्वी के देवता-अग्नि, सोम, बृहस्पति, पृथ्वी, मातरिश्वन, आप, सरस्वती एवं इडा आदि।
۞    ऋग्वेद काल में इन्द्र सबसे प्रमुख देवता था। यह युव्, बादल एवं वर्षा का देवता था। इसे पुरंदर कहा गया हे।
۞    बोगजकोई अभिलेख में वैदिक देवता इन्द्र, मित्रा, वरुण और नासत्य का उल्लेख है।
۞    इस काल का दूसरा प्रमुख देवता अग्नि था जो देवताओं एवं मनुष्य के बीच माध्यम का काम करता था।
۞    श्ऋतस्य गोपा वरुणाश्। वरुण प्राकृतिक घअनाओं का संयोजक तथा सभी देवों के नैतिक नियामक है।
۞    गायत्री मंत्र सवितृ को समर्पित है।
۞    सोम वनस्पति का देवता था।     
۞    पूषण पशुपालन एवं चारागाह का देवता था।
۞    उषा, आदिति, निशा, सरस्वती, इडा आदि ऋग्वैदिक देवियां थीं।
۞    ऋग्वेद में मंदिर तथा मूर्तिपूजा का उल्लेख नहीं है।
۞    देवों की अराधना यज्ञ एवं स्तुति से की जाती थी। यज्ञ सरल तरीके से किया जाता था।

۞    इस काल में भौतिक सुखों की प्राप्ति उपासना का मुख्य उद्देश्य था।

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