राजनीतिक
स्थिति:
۞ उत्तर वैदिक काल में कबीलाई सत्ता का विस्थापन
क्षेत्राीय सत्ता द्वारा हुआ। कई कबीलों ने मिलकर राष्ट्रों या जनपदों का निर्माण
किया। पुरू एवं भरत मिलकर कुरू और तुर्वस एवं क्रिवि मिलकर पांचाल कहलाए।
۞ इस काल में राष्ट्र शब्द प्रदेश का सूचक था।
۞ उत्तर वैदिक काल में शासन तंत्रा का आधार
राजतंत्रा था। राजा का पद वंशानुगत होता था यद्यपि जनता द्वारा राजा के चुनाव के
उदाहरण भी मिलते हैं।
۞ स्थाई जीवन पद्धति की शुरुआत, कबीलों का
एकीकरण तथा नियमित कर संग्रह के कारण राजा की शक्ति में वृद्धि हुई।
۞ क्षेत्राीय राज्यों के उदय होने से अब
श्राजनश् शब्द का प्रयोग किसी क्षेत्रा विशेष के प्रधान के लिए किया जाने लगा।
۞ सर्वप्रथम ऐतरेय ब्राह्मण में राजा की
उत्पत्ति का सिद्धान्त मिलता है।
۞ राजा के राज्याभिषेक के समय श्राजसूयश् यज्ञ
का यज्ञ का अनुष्ठान किया जाता था। ऐसा माना जाता था इन यज्ञों से राजाओं को दिव्य
शक्ति प्राप्त होती है। इसमें रत्निन नामक अधिकारियों के घर जाकर देवताओं को बलि
दी जाती थी एवं रत्निनों के घर राजा खाते थे।
۞ साम्राज्य विस्तार के उद्देश्य से अश्वमेघ
यज्ञ किया जाता था। यज्ञ तीन दिन तक चलता था तथा इसमें घोड़ा प्रयुक्त होता था। इस
यज्ञ से विजय और संप्रभुता की प्राप्ति होती है।
۞ वाजपेय यज्ञ का उद्देश्य राजा को नवयौवन
प्रदान करना था। यह सत्राह दिनों तक चलता था। राजा की सगोत्राीय बंधु के साथ रथ
दौड़ होती थी, जिसमें
राजा का रथ सबसे आगे चलता था।
۞ अथर्ववेद में राजा परीक्षित को श्मृत्युश् का
देवता कहा गया है।
۞ अथर्ववेद से राजा के निर्वाचन की सूचना
प्राप्त होती है।
۞ राजा का मुख्य कार्य सैनिक और न्याय संबंधी
होते थे।
۞ शतपथ ब्राह्मण में 12 प्रकार के
रत्नियों का विवरण दिया गया है।
۞ प्रशासनिक संस्थायें सभा और समिति का अस्तित्व
तो था परन्तु इनके पास पहले जैसे अधिकार नहीं रह गये थे। स्त्रिायों का अब सभा, समिति में
प्रवेश निषि) हो गया था।
۞ इस काल में विदथ पूर्णतया लुप्त हो गया था।
۞ इस काल के अंत तक बलि और शुल्क के रूप में
नियमित कर देना लगभग अनिवार्य हो गया था। संभवतः आय का सोलहवां हिस्सा कर के रूप
में लिया जाता था।
۞ भागदूध का संग्रह करने वाला अधिकारी होता था
तथा संग्रहीता राजकोष के नियंता को कहा जाता था।
۞ सूत राजकीय चारण, कवि या रथवाहक
था।
۞ राजा न्यायिक व्यवस्था का सर्वोच्च अधिकारी
था। न्याय व्यवस्था में दैवी न्याय तथा व्यक्तिगत प्रतिशोध का स्थान था। गांवों के
छोटे-मोटे विवाद श्ग्रामवादिनश् द्वारा निपटाये जाते थे।
۞ स्थाई सेना अभी भी नहीं थी युद्धके समय कबीले
के सदस्य ही योद्धन का कार्य करते थे।
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