बौद्ध धर्म के सम्प्रदाय


۞    द्वितीय बौ) संगीति में भिक्षुओं के मतभेद के कारण बौ) धर्म दो सम्प्रदाय महासंघिक जिन्होंने अनुशासन के दस नियमों को स्वीकार कर लिया था तथा थेरवाद में विभक्त हो गया।
۞    थेरवाद का महत्वपूर्ण सम्प्रदाय सर्वास्तिवादियों का था। इसके संस्थापक राहुलभद्र थे। मथुरा, गांधार तथा कश्मीर इसका केन्द्र था।
۞    महासंघिक सम्प्रदाय की स्थापना महाकस्सप ने की थी।
۞    कनिष्क के समय बौ) धर्म स्पष्टतः दो सम्प्रदाय महायान तथा हीनयान में विभक्त हो गया।
۞    हीनयान: रूढि़वादी प्रकृति के थे। ये बु) के मौलिक सिद्धान्त पर विश्वास करते थे। हीनयान एक व्यक्तिवादी धर्म था, इसका कहना है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने प्रयत्नों से ही मोक्ष प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए। ये बु) को मार्गदर्शक या आचार्य मानते थे भगवान नहीं। ये मूर्तिपूजा एवं भक्ति में विश्वास नहीं करते थे। इनका मत है कि निर्वाण के पश्चात् पुनर्जन्म नहीं होता। कालांतर में भारत में इनकी लोकप्रियता कम होती चली गयी परन्तु श्रीलंका, बर्मा, थाइलैंड, कम्बोडिया तािा दक्षिण वियतनाम में यह आज भी प्रचलित है।
۞    वैभाषिक: हीनयान के अंतर्गत एक सम्प्रदाय जिसकी उत्पत्ति मुख्यतः कश्मीर में हुई थी। इस मत के मुख्य आचार्य धर्मत्रात, द्योतक, वसुमित्रा तथा बुद्धदेव थे।
۞    सौत्रान्तिक: हीनयान का ही दूसरा सम्प्रदाय जो मुख्यतः सुत्तपिटक पर आधारित सम्प्रदाय है।
۞    महायान: सुधारवादी प्रकृति के थे। बु) को भगवान मानते थे और मूर्ति पूजा पर विश्वास करते थे। अवतारवाद तथा भक्ति से संबंधित हिन्दू धर्म के सिद्धान्त को अंगीकार किया। महायान साहितय संस्कृत में है। यह सम्प्रदाय चीन, जापान, तिब्बत, कोरिया एवं मंगोलिया में प्रचलित है। कालान्तर में महायान सम्प्रदाय भी दो भागों में शून्यवाद तथा विज्ञानवाद में बंट गया।
۞    शून्यवाद (माध्यमिक) मत का प्रवर्तन नागार्जुन ने किया था तथा विज्ञानवाद (योगाचार) के संस्थापक मैत्रोयनाथ थे। असंग तथा वसुबंध द्वारा विज्ञानवाद का विकास किया गया।
۞    बओधिसत्व निर्वाण पा्रप्त करने वाले व्यक्त थे जो मुक्ति के बाद भी मानव जाति के कल्याण के लिए प्रयत्नशील रहते थे। अवलोकितेश्वर, मजुश्री, वज्रपाणि तथा मैत्रोय बोधिसत्व है।
۞    वज्रयान: सातवीं शताब्दी के करीब बौ) धर्म में तंत्रा-मंत्र के प्रभाव के फलस्वरूप वज्रयान सम्प्रदाय का उदय हुआ। इस सम्प्रदाय में देवी तारा को प्रमुख स्थान दिया गया।  इस सम्प्रदाय के लोग मां, मदिरा, मुद्रा, मैथुन, मत्स्य सेवन करते थे। यह सम्प्रदाय बिहार तथा बंगाल में लोकप्रिय रहा।

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