एतिहासिक काल का प्रारम्भ
मौर्य काल
۞ मौर्यकाल भारतीय इतिहास में साम्राज्य निर्माण का पहला सफल प्रयास था। मौर्यों के शासनकाल से भारतीय इतिहास में एक निश्चित तिथिक्रम का ज्ञान होना प्रारंभ होता है।
मौर्यकालीन इतिहास के स्रोत
साहित्यिक स्रोत:
۞ कौटिल्य का अर्थशास्त्रा: कोटिल्य को विष्णुगुप्त या चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है। अर्थशास्त्रा 15 अधिकरणों तथा 180 प्रकरणों में विभाजित है। इसकी पांडुलिपि की खोज सर्वप्रथम आर. शाम शास्त्राी ने 1904 में की थी। राजनीतिशास्त्रा और लोकप्रशासन से संबंधित यह एक अत्यंत व्यापक ग्रंथ है।
۞ मेगास्थनीज की इंडिका: मेगास्थनीज को यूनानी शासक सेल्युकस निकेटर द्वारा चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में राजदूत बनाकर भेजा गया था। इंडिका एक यात्रा-वृतांत है जिससे मौर्यकालीन प्रशासन तथा सामाजिक परम्परा की जानकारी मिलती है। इसकी मूल पांडुलिपि उपलब्ध नहीं है लेकिन स्ट्रेबो, एरियन एवं प्लिनी जैसे रोम लेखकों के उद्धरणों का संग्रह जो इंडिका से संबंधित है, इंडिका के रूप में हमारे पास उपलब्ध है।
۞ विशाखदत्त का मुद्राराक्षस: यद्यपि यह गुप्तकालीन ग्रंथ है परन्तु इसका कुछ अंश मौर्यकालीन इतिहास की जानकाीर की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इससे मुख्य रूप से चाणक्य की सहायता से चन्द्रगुप्त द्वारा नंद वंश को अपदस्थ करना तथा सामाजिक परम्परा से संबंधित जानकारी प्राप्त होती है। इसमें चन्द्रगुप्त की परिषद सभा का भी उल्लेख है।
۞ मौर्य इतिहास का उललेख करने वाले अन्य साहित्यिक स्रोत में चाणक्य की चन्द्रगुप्त कथा, क्षेमेन्द्र की श्वृहतकथा मंजरीश्ए कल्हण की राजतरंगिणी तथा सोमदेव का श्कथासरित्सागरश् आता है।
۞ धार्मिक साहित्यिक स्रोत में पुराण से मौर्यकालीन इतिहास की जानकाीर मिलती है। इसके द्वारा प्रस्तुत कालक्रम तथा मौर्य वंशावली इतिहास की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
۞ बौ) ग्रंथों में घातक, दीर्घनिकाय, दीपवंश, महावंश, वंशथपकासिनी तथा दिव्यावदान से मौर्यकाल के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।
۞ जैन गं्रथों में भद्रबाहु के कल्पसूत्र एवं हेमचन्द्र के परिशिष्टपर्वन से मौर्यकालीन जानकारी प्राप्त होती है।
पुरातात्विक स्रोत:
۞ अशोक के वृहत शिलालेख, लघु शिलोख, स्तंभलेख, गुहा लेख आदि।
۞ खरवेल का हाथीगुम्फा अभिलेख।
۞ रुद्रदामन का गिरनार अभिलेख।
۞ प्रियदर्शी अभिलेख।
۞ सहगौरा ताम्रपत्रा।
۞ दशरथ का नागार्जुनी गुहा अभिलेख।
۞ इसके अतिरिक्त मुद्रा, उत्तरी-ओपदार काले मृदभांड तथा स्तूप, गुहाये, मृणमूर्तियों से भी मौर्यकालीन जानकारी मिलती है।
मौर्यों की उत्पत्ति:
۞ ब्राह्मण परम्परा के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य की माता शूद्र जाति की मुरा नामक स्त्राी थी जो नन्दों के रनवास में रहती थी।
۞ बौ) परम्परा के अनुसार मौर्य श्क्षत्रिय कुलश् से संबंधित थे।
۞ वृहत्कथामंजरी में मौर्यों को शूद्र माना गया है।
۞ महापरिनिब्बानसुत्त के अनुसार मौर्य पिपलिवन का शासक तथा क्षत्रिय वंश से संबंधित थे।
۞ मुद्राराक्षस की दुष्टिराजकृत टीका के अनुसार मौर्य संर्वाथ सि) नाक क्षत्रिय राजा की शूद्र पत्नी से उत्पन्न पुत्रा था।
۞ जस्टिन के अनुसार मौर्य श्निम्न कुलश् से संबंधित थे।
۞ जूनागढ़ अभिलेख में चन्द्रगुप्त के बहनोई पुष्यगुप्त का उल्लेख है जिससे पता चलता है कि मौर्य वैश्य थे।
۞ जैन ग्रंथ मौर्यों को मयूर से संबंधित करते हैं।
चन्द्रगुप्त मोर्य:
۞ चन्द्रगुप्त 25 वर्ष की आयु में चाणक्य की सहायता से अंतिम नन्द शासक घनानंद को पराजित कर पाटलिपुत्रा के सिंहासन पर बैठा।
۞ चन्द्रगुपत के शत्रा۞ओं के विरु) चाणक्य ने जो चाल चली उसका विस्तृत विवरण मुद्राराक्षस नामक नाटक में है।
۞ विलियम जोन्स पहले विद्वान थे जिन्होंने श्सेंड्रोकोट्सश् की पहचान भारतीय ग्रंथों में वर्णित चन्द्रगुप्त से की।
۞ चन्द्रगुप्त मौर्य की सिकन्दर से मुलाकात सैनिक शिक्षा ग्रहण करते समय हुई थी। प्लूटार्क एवं जस्टिन ने इसका वर्णन किया है।
۞ मुद्राराक्षक में चन्द्रगुप्त मौर्य के लिए श्वृषलश् शब्द का प्रयोग किया गया है।
۞ चन्द्रगुप्त मौर्य की श्चन्द्रगुप्तश् संज्ञा का प्राचीनतम अभिलेखीय साक्ष्य रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख से मिलता है।
۞ प्लूटार्क के अनुसार चन्द्रगुप्त ने अपनी 6 लाख सेना के माध्यम से पूरे भारत पर अधिपत्य स्थापित कर लिया।
۞ प्लिनी के अनुसार मगध की सीाम सिंधु नदी थी।
۞ जस्टिन ने चन्द्रगुप्त की सेना को डाकुओं का गिरोह कहा है।
۞ यूनानी, रोमन एवं बौ) साक्ष्यों के अनुसार चन्द्रगुप्त ने पहले पंजाब तथा सिंध को जीता।
۞ 304.5 ई.पू. या उसके आसपास बैक्ट्रिया के शासक सेल्युकस तथा चन्द्रगुप्त के बीच उत्तर-पश्चिमी भारत पर अधिपत्य के लिए एक भीषण युद्धहुआ जिसमें सेल्युकस की हार हुई। यूनानी और रोमन लेखक इस युद्धका कोई विवरण नहीं देता है केवल एजियानस ने लिखा है कि सेल्युकस ने सिंधु नदी पार की और भारत के सम्राट चन्द्रगुप्त से युद्धछोड़ा। युद्धका निर्णय मौर्यों के पक्ष में रहा और इसकी समाप्ति के बाद दोनो के मध्य एक संधि हुई।
۞ संधि की शर्तों का उल्लेख स्ट्रेबो ने किया है। सेल्युकस ने चन्द्रगुप्त को चार प्रान्त एरिया (हेरातद्धए अराकोसिया (कंधारद्धए जेड्रोसिया (मकरान) तथा पेरिपेनिसदई (काबुल) दहेज में दिया।
۞ सेल्युकस और चन्द्रगुपत के बीच वैवाहित संबंध स्थापित हुआ।
۞ चन्द्रगुप्त ने सेल्युकस को 500 हाथी उपहार में दिए।
۞ सेल्युकस ने चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में अपना एक राजदूत मेगास्थनीज भेजा।
۞ चन्द्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य में अफगानिस्तान, उत्तर-पश्चिमी भारत, बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात तथा उत्तरी मैसूर का कुछ भू-भाग शामिल था।
۞ चन्द्रगुप्त ने अपने साम्राज्य पर राजधानी पाटलिपुत्रा से शासन किया जिसे यूनानी और लैटिन लेखकों ने पालिबोथ्रा, पालिबोत्रा एवं पालिमबोथ्रा नामों से उल्लिखित किया है।
۞ पुराण के कालक्रम के अनुसार चन्द्रगुप्त ने 24 वर्षों तक शासन किया।
۞ जैन पम्परा के अनुसार अपने जीवन के अंतिम दिनों में चन्द्रगुप्त ने जैन धर्म स्वीकार कर लिया और अपने पुत्रा बिन्दुसार के पक्ष में सिंहासन छोड़ दिया। जैन संत भद्रबाहु के साथ वह मैसूर के निकट श्रवणबेलगोला चला गया जहां एक सच्चे जैन मुनि की तरह उपवास के द्वारा शरीर त्याग दिया।
۞ चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन के अंतिम समय में मगध में 12 वर्षों तक भीषण अकाल पड़ा।
۞ चन्द्रगुप्त मौर्य एक निरंकुश शासक था जिसने सारी सत्ता अपने हाथों में संकेन्द्रित कर ली परन्तु उसके शासन प्रबंध का उद्देश्य लोक कल्याण था।
बिन्दुसार:
۞ चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्रा बिन्दुसार उसका उत्तराधिकारी हुआ।
۞ जैन परम्परा के अनुसार बिन्दुसार की माता का नाम दुर्धरा था।
۞ तिब्बती बौ) भिक्षु तारानाथ के अनुसार चाणक्य बिन्दुसार काल में भी मंत्री था।
۞ बिन्दुसार ने अपने बड़े पुत्रा ससीम को तक्षशिला का तथा अशोक को उज्जैनी का राज्यपाल नियुक्त किया था।
۞ दिव्यावदान के अनुसार उत्तरापथ की राजधानी तक्षशिला में विद्रोह हुआ जिसे शांत करने के लिए बिन्दुसार ने अपने पुत्रा अशोक को भेजा था। तारानाथ के अनुसार श्खसश् और श्नेपालश् के विद्रोह को भी अशोक ने शांत किया एवं इन प्रदेशों को जीता।
۞ बिन्दुसार का शासनकाल विदेशों के साथ कूटनीतिक संबंधों के लिए महत्वपूर्ण था। स्ट्रेबो के अनुसार यूनानी शासक एण्टियोकस ने बिन्दुसार के दरबार में डाइमेकस नामक राजदूत भेजा था। बिन्दुसार ने पत्रा लिखकर एण्टियोकस से मदिरा, सूखे अंजीर एवं एक दार्शनिक भेजने की मांग की थी। एण्टियोकस ने मदिरा तथा सूखे अंजीर तो भेजे परन्तु दार्शनिक नहीं भेजे।
۞ प्लिनी के अनुसार मिò के राजा टालेमी द्वितीय फिलाडेल्कस ने डाइनोसियस को बिन्दुसार के दरबार में भेजा था।
۞ बिन्दुसार आजीवक सम्प्रदाय का अनुयायी था।