वैष्णव
धर्म:
۞ वैष्णव धर्म का उद्भव एवं विकास भागवत धर्म से
संबंधित है। इस धर्म का मुख्य केन्द्र मथुरा था। गुप्तकाल वैष्णव धर्म का
चरमोत्कर्ष काल था।
۞ अवतारवाद के सिद्धान्त को वैष्णव मत के अंदर
लोकप्रिय देवताओं को संयोजित कर और
लोकप्रिय बनाया गया।
۞ नारायण का जिक्र सर्वप्रथम ब्राह्मण ग्रंथों
में मिलता है। महाभारत के नारायणी पर्व में विष्णु के 6 तथा 12 अवतारों का
वर्णन मिलता है। मत्स्य पुराण में इनके 10 अवतारों का उल्लेख मिलता है।
۞ विष्णु के दस अवतार- 1ण् मत्स्य, 2ण् कूर्म, 3ण् वराह, 4ण् नृसिंह, 5ण् वामन, 6ण् परशुराम, 7ण् रामावतार, 8ण् कृष्णावतार, 9ण् बुद्ध, 10ण् कल्कि।
۞ वैष्णव धर्म में ईश्वर को प्राप्त करने के तीन
साधन-ज्ञा, कर्म
एवं भक्ति में सर्वाधिक श्भक्तिश् को दिया जाता है।
۞ गुप्तकाल में वैष्णव धर्म संबंधी सर्वाधिक
महत्वपूर्ण अवशेष देवगढ़ (झांसी) का दशावतार मंदिर है।
षडदर्शन
दर्शन प्रवर्तक
सांख्य कपिल
भौतिकवादी चार्वाक
योग पतंजलि
न्याय गौतम
पूर्व मीमांसा जैमिनी
उत्तर मीमांसा बादरायण
वैशेषिक कणाद
۞ गुप्तकालीन गंगधर अभिलेख में विष्णु को
मधुसूदन कहा गया है। स्कंदगुप्त का जूनागढ़ अभिलेख विष्णु की स्तुति से प्रारम्भ
होता है।
۞ पंचरात्रा मत वैष्णव धर्म का प्रधान मत था
जिसमें नारद ने परमतत्व, मुक्ति, युक्ति, योग एवं विषय
जैसे पांच तत्व होने की बात कही।
۞ दक्षिण भारत में रहने वाले वैष्णव संतों को
श्अलवारश् कहा जाता था। अलवार संतों की संख्या 12 थी। इन संतों में एक मात्रा
महिला आण्डाल का जिक्र मिलता है।
۞ वैष्णव भक्ति को दक्षिण भारत में ले जाने का
श्रेय रामानन्द को है।
۞ वैरवानश सम्प्रदाय अनुष्ठान प्रधान सम्प्रदाय
था। अत्राी, मरीचि, भृगु तथा
कश्यप ऋषियों द्वारा इसका प्रचार-प्रसार हुआ। वैरवानश संप्रदाय विष्णु के पंचरूप
व्याख्या पर आधारित है।
۞ इस सम्प्रदाय के पुरोहित आज भी तिरुपति और
कांची में विद्यमान वैंकटेश्वर मंदिरों सहित कई अन्य मंदिरों में संस्कृत भाषा में
अनुष्ठानों को सम्पन्न करते हैं।
प्रमुख
मत एवं आचार्य
प्रमुख
सम्प्रदाय मत आचार्य
वैष्णव
सम्प्रदाय विशिष्टाद्वैत रामानुज
ब्रह्म
सम्प्रदाय द्वैताद्वैत निम्बार्क
सनक सम्प्रदाय शुद्धाद्वैत वल्लभाचार्य
रुद्र
सम्प्रदाय अद्वैतवाद शंकराचार्य