स्व. यशवन्तरावजी का भाषण

 

षष्टी पूर्ति समारोह के उपलक्ष्य में स्व. यशवन्तरावजी द्वारा दिया भाषण


परिवार के सभी क्षेत्रों से समूचे भारत में और भारत के बाहर भी अपना जो काम चल रहा है, उस काम के कुछ आधार हैं उनमें निःस्वार्थ भाव है, परिश्रमशीलता और सक्रियता प्रमुख है। ये आधार तो हैं ही, फिर भी इसके अतिरिक्त और दो विशेषताएँ हैं। उन विशेषताओं के कारण हम अभी भी अपना काम, अपनी संस्था अत्यन्त प्रभावी रूप से, प्रामाणिकता से और जमीन पर रहकर कर सके हैं, उन दो विशेषताओं का उल्लेख करना आवश्यक है।

किसी भी समाज में अच्छा काम करनेवाली संस्थाएँ होती है। कुछ लोग मिलकर ये संस्थाएँ चलाते हैं। संस्था चलाना सामुहिक काम है। जब किसी एक व्यक्ति के महत्त्व को हम विशेष मानने लगते हैं तो उन संस्थाओं का भविष्य अंधकारमय हो जाता है ऐसा इतिहास ने हमे बार बार सिखाया है। इसलिए अपने काम के यश का रहस्य किस बात में है ऐसा विचार जब हम करने लगते है तो सभी गुणों के साथ ही यश सामुहिकता में है यह ध्यान में आता है। अपनी एक 'टीम' है और टीम के हर एक की क्षमता के अनुसार, कर्तुत्व के अनुसार जो काम उस पर सौंप दिया गया है, वह काम प्रामाणिकता और परिश्रमपूर्वक करना होता है। ऐसे सामुहिक काम की अपने देश में सभी क्षेत्रों में कमी थी, वह हमें दूर करना चाहिए। कोई भी काम सामुहिकता से करना चाहिए ऐसा आग्रह रखनेवालों में से हम हैं। यश 'टीम' भाव में छिपा है। एक व्यक्ति में नहीं।

इस प्रकार दूसरी विशेषता भी हम अपनाकर चल रहे हैं इसीलिये हमें यश भी मिल रहा है। हम सभी अपूर्णांक है और मिलकर पूर्णांक बनते हैं। इस बात पर विश्वास रखना हमारी दूसरी विशेषता है। हम यह भी मानते हैं कि सभी अपूर्णांक समान महत्व के होते हैं। अधिक महत्वपूर्ण अपूर्णांक और कम महत्वपूर्ण अपूर्णांक ऐसा नहीं होता है। साथ ही अपूर्णांक का महत्व कितना भी क्यों न हो पूर्णांक सब को मिलाकर ही बनता है। 'We are all equal but some are more equal' अर्थात सभी समान है, परन्तु उनमें कुछ अधिक समान है, ऐसी हमारी धारणा नहीं है। ऐसी परम्परा में हम विकसित हुए है, इसीलिए हमें अपनी शक्ति अपने से सर्वार्थ में बड़ी भारत भूमि की सेवा में समर्पित करते रहेंगे और इस कार्य में कभी खण्ड नहीं पड़ने देंगे। परिश्रम से, बुद्धि से, प्रामाणिकता से, पूरी शक्ति लगाकर आजीवन काम करने वाले मुझसे श्रेष्ठ व्यक्तित्व मैंने देखे है और ऐसे व्यक्ति होते हुए मुझ जैसे अति साधारण कार्यकर्ता का सत्कार मन को संभ्रमित करनेवाली घटना है, इसमें कोई सन्देह नहीं है।

फिर भी कार्यकर्ताओं द्वारा तय करने पर और उनके उद्देश्य को स्पष्ट करने पर इसे करना चाहिए, यह मुझे स्वीकार हुआ।

दो वर्ष पूर्व जब हम एक प्रारूप तैयार करने बैठे थे कि आगामी काल में देश में कौन-कौन से परिवर्तन होंगे, विद्यार्थी क्षेत्र में हम उन्हें किस प्रकार स्वीकार करेंगे, देश के किस भूभाग में शीघ्र काम बढ़ना चाहिए, तब हमनें ३०-३५ वर्षों में जो जो भी करते आए उसका पुनरावलोकन किया। हम सब का यह अनुभव था कि गत २५-३० वर्षों का कालखण्ड हमने एक पूँजी, अर्थात कार्यकर्ताओं की शक्ति का संचय करने में व्यतीत किया। वह ठीक ही हुआ, फिर भी वह पर्याप्त नहीं था। किसी भी कार्य के लिए कई तरह का बल लगता है, परन्तु सर्वाधिक महत्त्व का बल तो होता है मनुष्य बल। सचमुच जिद्द रखनेवाले, हिम्मत धारण करनेवाले, एकता का भाव रखनेवाले बहुमूल्य मनुष्यों को बड़ी संख्या में तैयार करने में हम सबने अपनी सारी शक्ति केंन्द्रित की।तब हमारे ध्यान में यह भी आया कि काल की गति और हम पर आने वाले संकट -आक्रमण इतने भीषण है कि समाज जीवन के सभी क्षेत्रों में शुरू होने वाले समाज विकास कार्य में यदि हम अपनी सहायता 'विद्यार्थी परिषद' के माध्यम से करना चाहते हैं तो हमें कुछ और साधन जुटाने पड़ेंगे। कुछ भागों में हमें शीघ्र पहुँचना होगा। उसकी सम्पूर्ण योजना बनानी पड़ेगी, ईशान्य भारत जैसे क्षेत्र में, जहाँ अपना विचार लेकर जाना बहुत कठिन था उस क्षेत्र में गत २० वर्षों से विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता जा रहे हैं, काम के लिए अनुकूल वातावरण निर्माण कर रहे हैं और अब वहाँ काम बढ़ेगा ऐसी परिस्थिति है।

हम यह जानते हैं कि जब शरीर की भूख बढ़ती है, तब उसके समुचित विकास के लिए सुयोग्य आहार की व्यवस्था करनी पड़ती है। हवाई जहाज जिस प्रकार धीरे धीरे अपनी गति बढ़ाता है और फिर आकाश में उड़ान भरता है, जिसे टेक ऑफ कहते हैं, उसी प्रकार हम ऐसा मानते है कि वर्तमान कालखण्ड यह विद्यार्थी परिषद का 'टेक

ऑफ' का कालखण्ड है। कुछ वर्ष पहले जब सभी प्रदेशों में विद्यार्थी परिषद का काम पहुँच रहा था, तब हम कहते थे कि विद्यार्थी परिषद यह एक 'अखिल भारतीय' संगठन होने की दिशा में आगे बढ़ रही है। बाद में ऐसा कालखण्ड आया कि परिषद के अधिवेशन में सभी प्रदेशों से १० हजार ७७२ कार्यकर्ता आए और सभी ने मिलकर देश की समस्याओं के सम्बन्ध में विचार किया। आगे हमें क्या करना है इसका जब विचार किया तब ऐसा लगता है कि अब हम जिस भूभाग में कम है, वहाँ हमारा काम तीव्र गति से बढना चाहिए। वहीं विशाल संगठन चलाने के लिए सामाजिक समर्थन, आर्थिक बल की व्यवस्था भी होनी चाहिए।



अभी हाल ही में शुरू किए गए कई प्रकल्पों को पैसे की कमी है। सच कहा जाए तो धन की कमी बहुत आड़े नहीं आती है। एक बार व्यक्ति काम शुरू कर दे, काम में उसे पूर्ण विश्वास हो, पूरी क्षमता से, सक्रियता से वह काम में लग जाए तो उसे सामाजिक मान्यता, प्रतिष्ठा, सहयोग अपने आप मिलने लगता है। फिर भी निकट भविष्य में सामर्थ्य प्राप्त करने की दृष्टि से विद्यार्थी परिषद ने 'विद्यार्थी निधि' यह ट्रस्ट प्रारम्भ किया है। इस ट्रस्ट के माध्यम से कुछ दीर्घकालीन गतिविधियाँ/योजनायें प्रारम्भ करने का विचार है। इसलिए कुछ राशि संकलित हो। यह निधि एकत्रित करने का केवल एक निमित्त में बना हूँ।

स्वार्थ से ओतप्रोत परिस्थियाँ चारों और व्याप्त भ्रष्टाचार के बावजूद देश भर के युवक युवतियों में अपने काम के प्रति विश्वास जगा सकें, ऐसी हमारी संगठन की स्थिति है। देश भर में घूमने वालों को निश्चित ही यही अनुभव आयेगा। स्वतंत्रता के बाद की पीढ़ी में आदर्शों की कमी दिखाई देती है। शीघ्रातिशीघ्र शार्टकट द्वारा अधिकाधिक लाभ कमाने वालों को आज के युवा देख रहे हैं। यह सही है। किंतु केवल परिषद ही नही तो अच्छा काम करने वाले कई अन्य संस्थाओं के प्रयत्नों से आश्वस्त करने वाली परिस्थिति देश में निर्मित हुई है। इस देश के लिये जो भी अच्छा करना है वह हम ही करेगें। इस प्रकार का प्रथम पुरूषी विचार लेकर काम करने वालों की संख्या यद्यपी पर्याप्त नहीं है किंतु आश्वस्त करने वाली अवश्य है।

समाज का काम जो निस्वार्थ रूप से कर रहे हैं, मिलकर चल रहे हैं, ऐसे लोगों को सभी प्रकार से सहायता करने वाले लोगों की समाज में आज भी कमी नहीं है। इसलिए विद्यार्थी परिषद के हम कार्यकर्ता उनका ऋण स्वीकार कर अधिकाधिक उत्तम काम करेंगे। उनकी अधिकाधिक सहायता प्राप्त करेंगे, और उनके विश्वास को कभी धक्का नहीं लगने देंगे, ऐसा विश्वास मैं आपको दिलाना चाहता हूँ।

विद्यार्थी परिषद का काम यह सर्वस्पर्शी करने का प्रयास हम करेंगे। अभी देश के उत्तर भाग में या अन्य भागों में महिलाओं को पुरूषों की बराबरी का स्थान नहीं है, परन्तु विद्यार्थी परिषद के अधिवेशन में आए १० हजार ७७२ प्रतिनिधीयों में जिस प्रकार हर प्रदेश से आए विद्यार्थी कार्यकर्ता थे, उसी प्रकार छात्रा और प्राध्यापक कार्यकर्ता भी थे। इतना ही नहीं जिस प्रकार विद्यार्थी कार्यकर्ता पूर्णकालिक काम करते हैं, उसी प्रकार छात्रा कार्यकर्ता भी पूर्णकालिक काम कर रही है। सर्वस्पर्शी काम का यह भी एक पहलू है।

प्रथम पुरूषी विचार यह भी विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता का लक्षण है। गत पाँच वर्षों में जिन १००-१२५ पुरूष कार्यकर्ताओं के विवाह हुए, उन्होंने किसीने दहेज नहीं लिया। आदर्शानुरूप व्यवहार यह परिषद का तत्व है। कार्यकर्ताओं के व्यवहार का अनुकरण करते करते ही समाज एक निरोगी संस्था जीवन की ओर आगे बढ़ेगा, ऐसा परिषद का विश्वास है, और ऐसी निरोगी स्वस्थ संस्था जीवन निर्माण करने की जिम्मेदारी परिषद के कार्यकर्ताओं ने स्वीकार की है, उसे पूर्ण करने का हम मनःपूर्वक प्रयास करेंगे, ऐसा विश्वास भी मैं आपको देता हूँ।

समाज अनेक क्षेत्रों से बनता है। ऐसे प्रत्येक क्षेत्र में कार्य करने के लिये सामान्यतः विद्यार्थी जीवन पूर्ण हो गया है। ऐसा व्यक्ति ही खोजना पड़ता है। हमारे विचार का आधार है कि यदि इस विद्यार्थी अवस्था में ही अपना विचार योग्य प्रकार से किसी व्यक्ति के पास पहुँचाया जाए तो आगे चलकर ३०-३५ वर्षों की अवधि तक वह व्यक्ति उन विचारों का आचरण करेगा। और सामाजिक परिवर्तन की दिशा में भले ही थोड़ा क्यों न हो, एक कदम आगे बढ़ना सम्भव होगा।

यह सब विचार करते समय, कार्य करते हुए हमने मन में कभी गर्व धारण नहीं किया, यद्यपि विद्यार्थी परिषद देश का सबसे बड़ा छात्र संगठन है। फिर भी जो संगठन का लक्ष्य है, जो होना चाहिए उस से हम बहुत ही पीछे हैं। करने जैसा बहुत कुछ है। इसलिए किसी विशिष्ट कारण से मन में गर्व धारण करने जैसा कुछ नहीं है।

_हमें सम्पूर्ण समाज का समग्र परिवर्तन करना है। सम्पूर्ण समाज का विकास करने के लिए आवश्यक उतना विचार, उतनी योजना, लक्ष्य प्राप्ति का संकल्प जब हम सामुहिक रूप में प्रकट करेंगे तब हम सफलता की दिशा में आगे बढ़ सकेंगे। तब हमें अपने कार्य के प्रति विश्वास पैदा होगा।

इस अवसर पर इस उपक्रम की सहायता करने वालों, हितचिन्तकों का मैं विद्यार्थी परिषद के सभी कार्यकर्ताओं की ओर से यह निस्संकोच आश्वासन दे सकता हूँ कि इन प्रयत्नों में हम कहीं भी कम सिध्द नहीं होंगे। इस उपक्रम के बारे में आप को विश्वास दिलाने, परिषद कार्य के प्रति विश्वास जताने जितना आवश्यक था, जरूरी था उतना ही मैंने कहा है। आपके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए मैं अपना कथन समाप्त करता हूँ।

 


जानकारी अच्छी लगे तो पेज को follow करना न भूले।


Post a Comment

Previous Post Next Post