एक धाय जिसने मुगलों का नाश किया

एक धाय जिसने मुगलों का नाश किया

समय : १५३६ ईस्वी

स्थान : चित्तौड़, राजस्थान

 

पृष्ठभूमि

सन १५२७ में चित्तौड़ के महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) बर्बर हमलावर बाबर को हराने ही वाले थे जो कि मुर्दो और बच्चों के साथ भी कुकर्मों के लिए मशहूर था। यह बाबर अकबर का दादा था। इसी बाबर ने अयोध्या में राम मंदिर को ध्वस्त कर वहां मस्जिद बनवाई और अपने बाल गुलाम के नाम पर उस मस्जिद का नाम 'बाबरी' रखा था।

शिलादित्य जो कि राणा सांगा की सेना का एक विश्वासपात्र सेनापति था - वह बाबर से जा मिला, योजना के मुताबिक बाबर पर पीछे से हमला करने की बजाए उसने बाबर की सेना के साथ मिल कर राणा सांगा पर हमला कर दिया। इतिहास की एक सबसे खूनी लड़ाई के बाद राणा सांगा को पीछे हटना पड़ा। यह न तो पहली ही बार था और न ही आखिरी जब भारत को अपने ही किसी गद्दार के कारण हारना पड़ा।

अस्सी से ज्यादा घावों के बावजूद राणा सांगा ने कुछ ही महीनों में एक दुर्जेय सेना बना ली थी ताकि बाबर को हराया जा सके लेकिन उनको उन्हीं के परिवार में से किसी ने ज़हर दे दिया। उनके सबसे बड़े पुत्र राणा रतन सिंह की भी १५३१ में असमय मृत्यु हो गई। राणा रतन सिंह के छोटे भाई राणा विक्रमादित्य १४ साल की उम्र में अगले राजा बने।

१५३५ ईस्वी में गुजरात के बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर हमला कर दिया। आपसी फूट के कारण राजपूताना ने चित्तौड़ की मदद करने से इंकार कर दिया। राणा सांगा की विधवा पत्नी रानी कर्णावती और अन्य स्त्रियों को जिहादियों की गुलामी से बचने के लिए जौहर करना पड़ा। रानी पद्मावती के दो सौ साल पहले किए हुए जौहर के बाद यह दूसरा जौहर था। (जौहर महिलाओं द्वारा की जाने वाली एक सामूहिक आत्मदाह की प्रथा थी ताकि वो स्वयं को बर्बर इस्लामी हमलावरों की बलात्कारी सेना से बचा सकें।)

राजपूतों ने बहादुर शाह को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया और विक्रमादित्य को अपना राज्य वापस मिल गया लेकिन सिर्फ एक ही साल बाद विक्रमादित्य के चचेरे भाई वनवीर सिंह ने राज्य हथियाने की साजिश करी। उसने एक रात विक्रमादित्य की हत्या कर दी और राणा सांगा के अंतिम जीवित पुत्र कुंवर उदय सिंह की भी हत्या करने चल पड़ा।

राजकुमार उदय सिर्फ १३ साल का था। वोपन्ना' धाय की देख-रेख में था जो कि रानी कर्णावती की विश्वासपात्र थीं जिन्होंने चार साल पहले जौहर कर लिया था। पन्ना का अपना भी एक बेटा था – ‘चन्दन' जो कि राजकुमार की ही उम्र का था।

एक विश्वास पात्र नौकर जिसने विक्रमादित्य की हत्या होते हुए देखी थी उसने पन्ना को सूचना दी कि वनवीर, उदय सिंह की हत्या करने आ रहा है।

पन्ना ने अभी बच्चों को खिला कर सुलाया ही था। उदय एक शाही पलंग पर शांतचित्त सो रहा था । चन्दन पन्ना धाय की बगल में जमीन पर सोया हुआ था।

 



परिस्थिति

पन्ना रात के सन्नाटे में दूर से आते हुए कदमों की आहट सुन रही थी। समय गंवाना उचित नहीं था। उसने एक और विश्वासपात्र सेवक को बुलाया। फिर पन्ना ने दोनों सेवकों से कहा कि सोते हुए राजकुमार को फलों के एक टोकरे में डालने में उसकी मदद करें। उसने निर्देश दिया कि वे टोकरे को चुपके से पिछले दरवाजे से बाहर ले जाएं।

वह उनसे अगली रात को नदी के किनारे एक सुनसान स्थान पर इसी समय पर मिलेगी।

हैरान से दोनों सेवक चले गए। वे सोच रहे थे कि हम राजकुमार को कैसे बचा पाएंगे? जल्द ही वनवीर यहां होगा और जान जाएगा कि राजकुमार यहां से जा चुका है। उनके वहां से बाहर निकलने से पहले ही वनवीर उनको पकड़ लेगा। वे जितनी तेजी से भाग सकते थे, भाग निकले, भगवान से किसी चमत्कार की प्रार्थना करते हुए। कदमों की आहट तेज होती गई। वनवीर के पहुंचने से पहले पन्ना को कुछ और काम भी करने थे।

 

आगे क्या हुआ

पन्ना ने अपने सोए हुए बेटे को खींचा, “चन्दन, यहां से उठो और यहां आ के सोओ।"

उसने आधी नींद में सोए हुए चंदन को खींच कर बिस्तर पर लिटा दिया। चंदन फिर से गहरी नींद में सो गया। वो तेजी से कमरे के कोने में लेट गई और सोने का उपक्रम करने लगी।

कदमों की आहट कमरे में पहुंची, दरवाजा खुला, वनवीर अंदर आयाउदय कहां पन्ना ने चुप-चाप प्रश्नवाचक नज़रों से देखते हुए बिस्तर की तरफ इशारा कर दिया। वनवीर तेजी से बिस्तर की तरफ गया और सोते हुए बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया। बच्चा थोड़ी देर तड़प कर शांत हो गया।

वनवीर बाहर निकल गया। उसने सिंहासन जीत लिया। पन्ना सब कुछ खो चुकी थी।


 यह भी पढे-  पद्मावती - एक सत्य कथा-  https://www.edupdates.in/2020/12/blog-post_30.html                             मौत की महारानी- https://www.edupdates.in/2020/12/blog-post.html




और तब

वनवीर ने अपने दरबारियों की आपात बैठक बुलाई। अपने आप को अगला राजा घोषित किया क्योंकि राजा के परिवार से कोई जीवित नहीं था। उसके राज-द्रोही दोस्तों ने उसका समर्थन किया।

दोनों मृतकों का भोर होने से पहले ही जल्दी-जल्दी अंतिम संस्कार कर दिया गया। अगले दिन वनवीर ने अपनी ताजपोशी की।

पन्ना अगली रात उदय को नदी के पास मिली। उसने पूछामईया चंदन कहां है ?" पन्ना ने जवाब दियाचलो जल्दी चलें।वो देख रहा था कि पन्ना की आंखें गीली हो गईं हैं। वो सब कुछ समझ गया।

एक मां ने मेवाड़ की रक्षा के लिए अपने बेटे का बलिदान दे दिया था।

 

परिणाम

पन्ना और उदय को बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन वे अगले चार साल तक गुप्त रूप से रहे । १५४० ईस्वी में उदय सिंह ने अपने वफादारों की एक सेना बनाई और चित्तौड़ पर हमला कर दिया। वनवीर मारा गया।

उसी साल उदय सिंह को एक बेटा हुआ, जिसे हममहाराणा प्रताप' के नाम से जानते

जब मुग़ल साम्राज्य अकबर के राज में बिना किसी प्रतिरोध के फ़ैल रहा था। महाराणा प्रताप विरोध की एकमात्र आवाज़ बने। यह प्रतिरोध इतना ज़बरदस्त था कि मुग़ल साम्राज्य के अधिकांश स्रोत उसी को दबाने में खप गए थे। अकबर के सेनापति मेवाड़ के क्षेत्र में तैनात नहीं होना चाहते थे। जल्द ही पूरे भारत में विद्रोह की आग फैल गई। मुग़ल शासन कमजोर होता गया और हमेशा के लिए समाप्त हो गया। प्रताप की गुरिल्ला युद्ध की पद्धति को शिवाजी और गुरु गोबिन्द सिंह जैसे महावीरों ने भी आगे बनाए रखा और ज़ालिम मुग़ल साम्राज्य आखिरकार दुनिया से ही समाप्त हो गया।

आज मुग़ल साम्राज्य के राजकुमार भारत में रेलवे स्टेशन और बस अड्डों पर भीख मांगते हुए दिख जाते हैं।

 

अब क्या करना है

याद रखें - आज़ादी मुफ्त नहीं मिलती है। एक पन्ना धाय थीं जिन्होंने हमें बचाने के लिए अपने बेटे की बलि चढ़ा दी थी। उस पन्ना धाय को अनंत कोटि नमन।


कहानी पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद। 

अगर आपको ये कहानी पसंद आए तो अपना comment करके जरूर बतावे और दूसरों को भी share करे। 

Post a Comment

Previous Post Next Post