अफसर

अफसर

बस स्टेण्ड पर बस का इन्तजार करते करते काफी देर हो गई। साढ़े दस बज चुके थे किन्तु सुरेश को इस बात की कोई चिन्ता नहीं थी। यह कृषि विभाग के एक कार्यालय में कनिष्ट लिपिक के पद पर कार्य कर रहा था । कार्यालय का समय दस से पांच बजे तक का था । 

सुरेश जानता था कि आज वह काफी देर से भॉफिस पहुंचेगा किन्तु उसे इस बात की कोई परवाह नही थी। वह कभी प्रॉफिस में वक्त पर पहुंचता था और न ही वक्त पर ऑफिस छोड़ता था। देर से भऑफिस जाना और जल्दी ही लौट माना उसकी आदत बन गई थी। ऑफिस में काम भी नहीं के बरा. बर करता था । या तो दिन भर दूसरे बाबुमों से वह गप्पे लड़ाता रहता या सीट पर ही सो जाता था। मॉफिस सरकारी न होकर जैसे उसके घर का था। वह बस स्टेण्ड पर खड़ा सिगरेटें फूकता रहा । 

उसके साथ ही उसका एक मित्र राजेश भी खड़ा था। राजेश ने कहा, ;बस का इन्तजार करते-करते इतनी देर हो गई, क्यो न हम टैक्सी ही करलें।;टैक्सी का किराया अधिक लगेगा। ;तो क्या हुआ, तुम्हारा ऑफिस का टाइम भी तो हो चुका है न ।;वह सो रोज ही होता है । सुरेश ने लापरवाही से कहा। ;तुम इतनी देर से भॉफिस पहुंचते हो, क्या तुम्हारे प्रफसर तुम्हे. कभी कुछ नहीं कहते ?

कहे कौन ? अफसर तो खुद ही ऑफिस मे देर से प्राते हैन समय पर पाते हैं और न ही समय पर जाते हैं । पाकर भी सीट पर नहीं मंठते हैं । इससे हमारी भी मौज रहती है।

सुरेश ने ठीक ही कहा था । जब राजा ही लापरवाह हो तो प्रजा की कौन कहे । प्राज का इन्सान यही देखता है कि दूसरा कोई जैसा करता है, वैसा ही यह भी करे। वह बुराइयों को जल्दी अपनाता है । मलाई की मातो की मोर तो जैसे उसका ध्यान ही नहीं जाता है। कितने प्रादमी ऐसे है जो यह सोचते हैं कि दूसरा चाहे कुछ भी करे, उन्हे वो यह देखना है कि उनका अपना फर्ज क्या है ? उनका कत्तव्य क्या है, उन्हें सही मायने मे क्या करना चाहिए।

सुरेश जैसे नासमझ व्यक्तियों के कारण ही आज कर्मचारी वर्ग के प्रति प्राम व्यक्तियो की यही भावना है कि कर्मचारी ऑफिस में काम हो क्या करते हैं, दिन भर कुर्सी तोड़ते हैं । काम कुछ करते नहीं हैं। किन्तु इस बात को भी नहीं भुला देना चाहिए कि चाहे जो भी हो, अन्त मे काम तो कर्मचारियों को ही करना पड़ता है। कोई काम समय पर नहीं होता है, तो विलम्ब से होता है किन्तु होता तो है ही। . . सुरेश के ऑफिस की हालत कुछ ज्यादा ही बिगड़ी हुई थी जिसका समस्त उतरदायित्व उसके अफसर का था। अफसर ठीक हो, समय व काम का पाबन्द हो तो कोई कारण नहीं कि कर्मचारी लापरवाह हो जाए। ;अफेसर ऑफिस मे समय पर न जाएं पाए, कामकाज को देखे नही, कौन , ;क्या कर रहा है, क्या नहीं कर रहा है, कौन-सा काम वक्त पर हमा या नहीं- जब तक वह यह न देखे तब तक कार्य चल ही कसे सकता है।

अक्सर सभी सैक्शनो में कागजों का ढेर लगा हुआ था किन्तु जवाब • जा ही नहीं पाते थे। तीन-तीन चार-चार रिमाइन्डर आ जाते किन्तु | जवाब नदारद । कोई बहुत ही जरूरी हुमा और कार्यवाही करने की बात सिर पर ही आ पड़ी तो कार्यवाही हो गई अन्यथा कागज फाइलों मे दबे ही पड़े रहते थे। बस आने पर सुरेश बस में बैठ गया । भब तक ग्याहर बज चुके । “थे ।ॉफिस पहुंचते-पहुंचते साढ़े ग्यारह बज गए । सबसे पहले

सुरेश का सामना हैड क्लर्क से हुआ । हैड क्लर्क ने कहा. तुम्हे साहब ने याद किया था।

साहब प्रा गए ? सुरेश ने पाश्चर्य से पूछा।

सुरेश साहब के पास पहुंचा । वह नमस्ते कर खड़ा हो गया । साहब ने पूछा, पाप अभी भाए हैं?

हां, सर ! बस न मिलने के कारण थोड़ा लेट हो गया।

टाइम का ध्यान रखा करो। है: मॉफिस से भारस्पान्डेन्स वाली फाइल भिजवादो।

सुरेश ने साहब के कमरे से बाहर निकल कर मुह बनाया। उसने अपनी सीट पर जाकर चपरासी के हाथ फाइल भेज दी।सुरेश के सापी रामधन ने कहा, माज तो साहब के सामने पेशी होगई न?

काहे की पेशी सुरेश ने लापरवाही से कहा, कोई खास बात नही थी।

क्या कहा था ? बस, यही कि टाइम का ध्यान रखा करो। खुद तो जैसे बड़े टाइम के पावन्द हैं।

साहब टाइम के पावन्द नहीं है, यह हमारे हक में अच्छा ही है। अगर खुद टाइम पर प्रा जाएं तो हमें पाराम से माने जाने का मौका कसे मिले । हमारी मौज कैसे हो।

सुरेश का एक साथी दीनदयाल जो कि से सो इन्ही की श्रेणी का था किन्तु कभी कभी इनकी पालोचना भी कर बैठता था और समझदारी की बातें भी.कह देता था। उसने हम कर कहा, अरे, बेइमानों ! जिसका नमक खाते हो, उसकी नमक हलाली भी किया करो। दिन भर बदमाशी की बातों मे ही लगे रहते हो। थोड़ा सरकारी काम भी किया करो। काम तो तुम करते हो न सुरेश ने जल कर कहा, तुम जल्दी ही अफसर बन जामोगे।

ऐसी अपनी तकदीर कहाँ है ? सरकार के वफादार हो न ।

वफादार तो क्या, फिर भी मैं सोचता है कि प्रॉफिस के निय का पालन तो करना ही चाहिए।

कहते तो तुम ठीक हो रामधन ने कहा, किन्तु सब बात तो है कि पहली बात तो हमारे प्रसफर ही लापरवाह हैं जिसके कारण । खुली छूट मिली हुई है। दूसरी बात यह भी है कि प्राज का कर्मचा वर्ग अभावग्रस्त है। कर्मचारियों को तनख्वाह ही कितनी सी मिलती है महगाई दिन-ब-दिन बढती जा रही है, तस्वाह उसके हिसाब से बढ़ नहीं है। छोटे कर्मचारियों के पास न वगले होते हैं, न कार होती है म न ही बैंक बैलेंस होता है। प्रभावग्रस्त कर्मचारी करे तो क्या ? इसरि वह अपने ही हाल में मस्त रहता है। मोर काम के प्रति रुचि न रखता है।

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यह तो कोई बात नहीं हुई। दीनदयाल ने कहा, सभी के पास बगले, कारें और बैंक बैलेन्स होता नहीं है । फिर व्यक्ति ऐसा उद्योग तो उसे यह सब भी मिल सकता है। इन्सान को बड़ा बना कर भगव नही भेजता है बल्कि वह स्वयं के अपने परिश्रम और लगन से बड़ा बन है । फिर भी मेरी मान्यता है कि इन्सान को अपना फर्ज याद रख चाहिए। अपना कर्त्तव्य नहीं चूकना चाहिए।

बस, बस, सुरेश ने कहा । सुरेश ने कहा, अब यह लेक्चरबा बन्द करो। तुम अपनी ही कहो न ! तुम कितना काम करते हो। कोन वक्त पर पाते हो । दिन भर सीट पर सोते रहते हो। कागजों का लगा हुआ है। चले हो दूसरों को शिक्षा देने । दीनदयाल कुटिलता के साथ मुस्करा दिया। उसने कहा, किन्तु इन बातो को स्वीकार करता हूं, और अनुभव करता हूँ, यही । किन्तु इन बातो को स्वीकार करने और अनुभव करने से ही काम नहीं हो जाता है । काम तो करने से ही होगा। उतना ही बा करो, जितना कर सको।

उसी दिन शाम को खबर मिली कि मौजूदा अफसर का द्रास्फर गया है। ऑफिस के स्टाफ के ऊपर जैसे बम गिर पडा। सभी को इस पात का दुख प्रा । दुख इस वजह से नहीं कि उनके अफसर अब चले जाएगे बल्कि इस वजह से कि अब कहीं उनके मौज उडाने के दिन न चले जाएं। सुरेश और उसके साथियो के बीच इसी विषय पर चर्चा छिड़ गई । सुरेश ने कहा, यह तो बहुत अच्छा अफसर था, खूब मौज रहती थी इसके राज मे । अव म जाने कैसा अफसर पाएगा।

भगवान ने चाहा तो अच्छा हो पाएगा। रामधन ने कहा। दीनदयाल ने मुस्करा कर कहा, मुझे तो लगता है कि पब मौर उड़ाने के दिन गए। और कोई कठोर ही अफसर पाएगा।

कठोर पाकर हमारा क्या कर लेगा, सुरेश ने कहा, देख लेये उसे भी।  

लेकिन मा कौन रहा है ?; रामधन ने पूछा। ;झालावाड से श्री एस०पी० सक्सेना।; दीनदयाल ने उत्तर दिया।

दो ही दिन बाद भी सक्सेना ने कार्यालय मे प्राफर ड्यूटी जोइन फरली । पूर्व अफसर से चार्ज लेकर उन्हे कार्य मुक्त कर दिया गया।

उन्हें स्टाफ ने भावभीनी विदाई दी। ड्यूटी जोइन करने के दूसरे ही दिन सक्सेनाजी प्रॉफिस टाइम से पांच मिनट पहले ही आ गए।

उन्हे यह देखफर बड़ा माश्चर्य हुमा कि कार्यालय का कोई भी कर्मचारी ग्यारह बजे से पूर्व नही माता है । ज्यों-ज्यों कर्मचारी प्राते गए, त्यो त्यो वे उन्हें भविष्य में समय पर पाने की चेतावनी देते गए।

अपनी आदत के मुताविक सुरेश भी देर से भाया था। उसे भी जल्दी पाने की चेतावनी मिली।

उस दिन जब माफिस में बाहर से डाक पाई तो सक्सेनाजी को यह देखकर माश्चर्य हमा कि उसमें अधिकांश रिमाइन्हर थे। उन्हें देखने से ज्ञात होता था कि इससे पहले भी तीन-तीन-चार-चार रिमाइन्डर मा चुके पे। हरएक रिमाइन्डर पर उन्होंने सम्बन्धित समशन को रिमा दिपा कि पत्र का उत्तर दो दिन के भीतर-भीतर अवश्य भेज दिया जाए।

सरसेनाजी ने दिन भर मे दो-तीन बार कार्यालय का राउन्ड भी लिया जिसमें उन्होंने कर्मचारियों की बात करते या सोते हुए पाया जिसके लिए उन्होंने उन्हें मौखिक चेतावनी दी।

कार्यालय का इन्टरयल होने पर कर्मचारी पन्द्रह-पन्द्रह बीस-बीन मिनट देर से पहले जिसके लिए भी चेतावनी दी गई।

कार्यालय की सम्पूर्ण व्यवस्था देख कर सक्सेनाजी का माया ठनका। उन्होंने देखा, कि यहा की व्यवस्था इतनी मधिक बिगड़ी हुई है कि कम चारियों के हरएक कार्य में शिकायत माती है भोर उन्हें कदम-कदम पर टोकना पड़ता है। उसी दिन सक्सेना ने यह घोषणा करदी कि अगले दिन प्रत्येक कर्मचारी के कार्य का निरीक्षण किया जाएगा। इससे कर्मचारियो मे बड़ी खलबली मच गई। निरीक्षण की सूचना अचानक ही दी गई थी तथा उन्ह मपना कार्य सुधारने का जरा भी अवसर नहीं दिया गया था। इस सम्बन में कर्मचारियो ने हैड क्लक से बात की और उससे कहा कि वह साहब कहें कि निरीक्षण पाच-सात दिन बाद किया जाए ताकि कर्मचारियों क. कार्य को सुधारने का अवसर मिल सके । हैड बलर्क ने इस सम्बन्ध सक्सेनाजी से बात की तो सक्सेनाजी ने उन्हे डांट दिया और कहा, तो में निरीक्षण करने से पूर्व इसकी सूचना देने के पक्ष में ही नहीं है दरअसल सही निरीक्षण तभी होता है जब किसी भी क्षण अचानक पर नाए । स्थिति का सही पना तभी चल सकता है। गनीमत समझो किम एक दिन पूर्व कह दिया।

सर, है। क्लर्क ने बड़ी नम्रता के साथ कहा, निरीक्षण के लि पाच-सात दिन पूर्व का समय सभी बार दिया जाता है। प्राडाटर निरीक्षण को सूचना कुछ दिन पूर्व देते हैं।

सक्सेनाजी ने कहा, मैं अपना कार्य अपने ही तरीके से करता हूँ आप अपनी मीट पर जाइये।

अगले दिन भी प्रायः सभी कर्मचारी कार्यालय में लेट पहुंचे। • भी पाच मिनट से अधिक देर से पाये थे उन सभी को लिखित में चेताव दे दी गई। इससे कर्मचारियो मे खलबली मच गई।

सक्सेनाजी ने सभी कर्मचारियो के कार्य का निरीक्षण किया। निरीक्षण मे उन्होने पाया कि पंडिंग कागजो का सभी संकसनो मे ढेर पडा हुमा था। उस विषय मे पूछने पर सभी ने इसकी बजह कार्य का अधिक होना बताया। सक्सेनाजी को इस बात पर विश्वास नही हुमा । वे समझ गए कि इस कार्यालय में पावश्यकता से अधिक पोल चल उन्होंने सभी को लिखित में चेतावनी दे दी कि कार्यालय में पाए सभी कागजों का उत्तर मधिक से अधिक सात दिन के भीतर अवश्य दे दिया जाए। और यदि इस सम्बन्ध में कोई कठिनाई पाए तो कर्मचारी उनसे चर्चा करें। लापरवाही होने पर कार्यवाही की जाएगी।

सक्सेनाजी ने उसी दिन साय चार बजे स्टाफ की एक मीटिंग का प्रायोजन किया। मीटिंग में उन्होंने कर्मचारियों को सम्बोधित कर कहा, मैंने आज के निरीक्षण मे यह देखा है कि कोई भी कर्मचारी अपने कर्तव्य के प्रति सजग नही है। सभी का काम असन्तोषजनका है। कार्यालय में इतने अधिक रिमाइन्डरों का माना तो मपा, एक रिमाइन्डर का पाना भी मैं दुर्भाग्यपूर्ण समझता हूँ।

आप लोग इतना याद रखिए कि मैं इस बात को कतई पसन्द नहीं करूंगा कि माज से सात दिन बाद कार्यालय मे कभी कोई रिमाइण्डर पाए। सात दिन का समय आपको इसलिए दिया जा रहा है ताकि पाप इस बीच पण्डिग कार्य पूरा कर सके । किसी भी कार्यालय को रिमाइण्डर देकर यह जाहिर किया जाता है कि कार्यालय मे इतनी लापरवाही बरसी जाती है कि बार-बार रिमाइण्डर देने पड़ते है। इस प्रकार एक मोर तो कार्यालम पर लापरवाही का पारोप लगाया जाता है दूसरी मोर पर भेजने वाले का समय, श्रम और धन का अपव्यय होता है और इन सब चातों का उत्तरदायित्व मफसर पर होता है । कार्यालय का स्टाफ, कंसा कार्य करता है, कर्मचारी अपने कार्य के प्रति कितने सजग हैं, यह अफसर की कार्यकुशलता पर निर्भर करता है भोर में अपने काम के प्रति पूर्ण रूप से सजय हू। प्रतः जाहिर है कि मैं यही पाहूंगा कि मर्मचारियो में भी अपने कार्य के प्रति निष्ठा, लगन व सजगता उत्पन्न हो।

कार्यालय का स्टॉफ चूकि पहले से ही बिगड़ा हुमा यो। कर्मचारियों ने मोज उडाने के सिवा कभी कुछ किया ही नहीं था। प्रत. जाहिर है कि उन्हें सक्सेनाजी की नीति पसन्द नहीं भाई । एक प्रकार से वे उन्हें अपना दुश्मन समझने लगे और यही सोचते कि किसी प्रकार उनका ट्रांस्फर हो जाए तो अच्छा हो।।

सक्सेनाजी ने भी स्टॉफ को सुधारने के लिए जसे कमर ही कसली थी। कोई कर्मचारी पाच मिनट भी लेट भाए या जरा भी किसी काम में गल्ती करे तो हाथो हाथ उसे लिखित में चेतावनी मिल जाती थी।

इसका नतीजा यह हुमा कि कार्यालय के कर्मचारियों में प्रातक फैल गया। एक दिन सुरेश की उसके साथियों के साथ इसी विषय पर चर्चा छिड़ गई । उस दिन सक्मेनाजी सरकारी कार्यवश हैड प्रॉफिस गए थे।

सुरेश ने कहा, हमारा प्राज तक का रेकार्ड बहुत अच्छा रहा है किन्तु मुझे लगता है कि अब हमारा रेकार्ड खराब हो जाएगा। पर्सनल फाइल चेतावनियों व स्पष्टीकरणों से भर जाएगी । तथा सी.मार, भी अवश्य ही खराब हो जाएगी।

तुम्हारा ख्याल बिल्कुल दस्त हैं, दीनदयाल ने कहा, सक्मेनाजी जब तक यहाँ रहेगे, तब तक यही होता रहेगा।

किन्तु इसे रोकना भी मुपिकल नहीं है। रामधन में हस कर महा।

वह कैसे ?, सुरेश ने उत्सुक होकर पूछा।

अपना काम ठीक तरह करो.l रामधन ने कहा, शिकायत का मौका ही मत दो। इतना याद रखो कि कभी कोई अफसर बुरा नहीं होता है। वह कर्मचारियो से कार्य भौर अनुशासन चाहता है.। यदि ये बातें सही हों तो बुरा अफसर भी हमारे लिए अच्छा हो सकता है।

यह तुमने ठी कहा है, दीनदयाल ने कहा । । किन्तु कभी-कभी गल्ती हो जाना भी स्वाभाविक है। सुरेश ने कहा, इसका मतलब यह तो नहीं कि जरा जरा-सी बातो के लिए कर्मचारियो का रेकार्ड खराब कर दिया जाए। आखिर इन बातों का आगे चल कर अच्छा परिणाम नहीं निकलता है।

दीनदयाल ने कहा, किन्तु हम कर भी क्या सकते हैं। अपना कार्य ठीक करने और शिकायत का मौका न देने के सिवा हमारे पास कोई चारा नहीं है।

सभी कर्मचारियों ने निश्चय किया कि साहब की तरह कार्यालय में वक्त से पांच मिनट पूर्व ही पा जाया करें तथा कार्य मेहनत व लगन से किया करें। इसमे उन लोगो को धीरे-धीरे सफलता भी मिलने लगी।

एक दिन सुरेश कारणवश दस मिनट देर से भाया। उसे उसी समय सक्सेनाजी के सामने पेश होना पड़ा। सक्सेनाजी ने कहा, ;मिस्टर सरेश ! तुम कई बार चेतावनी देने के बावजूद भी लेट पाते हो। यदि तुम्हारी यही हालत रही तो मुझे तुम्हारे विरुद्ध कठोर भनुशासनात्मक कार्यवाही करने लिए बाध्य होना पड़ेगा। बहरहाल मैं यह नोट तुम्हारी सी. प्रार. मे दे रहा हूं।

सुरेश सक्सेनाजी से खफा तो पहले ही हो रहा था। सी. भार. में नोट देने की बात से उसे गुस्सा मा गया। उसने कहा, ;सर! माप मुझे बहुत परेशान करते हैं। मेरा रेकार्ड खराब करने से तो अच्छा है, कि माप मेरा द्रास्फर ही कर दें।

शट अप, सक्सेनाजी चीख पडे, तुम्हारी यह कहने की हिम्मत कैसे हुई। तुम यहां काम करते हो तो इसके बदले तुम्हें तनख्वाह मिलती है। तुम श्रमदान नही करते हो। भोर याद रखो, तुम्हारी इन्हीं हरकतो के कारण मैं तुम्हारा ट्रांस्फर कभी नहीं करूंगा। इससे पता नहीं, तुम्हारा तो कुछ बिगड़ेगा या नहीं किन्तु ट्रांस्फर से सरकारी कोश पर मसर जरूर पड़ेगा। तुम्हे मुफ्त का टी. ए. देना पड़ेगा। मैं ऐसे ट्रांस्फरों के पक्ष में नही है। इन बातों से सरकार का मनावश्यक पर्चा हो जाता है। तुम्हे इसी मॉफिस में रह कर कार्य करना पड़ेगा। यदि तुमने कभी कोई वेपदवी को तो तुम्हारा रेकार खराब किया . तुम्हें सस्पेपर भी किया जा सकता है मोर याद रसो, मैं तुम्हें नौकरी में भी हटा सकता हूँ। तुम प्राज जिस येप्रदवी से मेरे सामने पेश पाए हो, इसके लिए तुम्हें जवाब देना होगा । जानो अपनी सीट पर ।

सक्सेनाजी ने उसी समय हैड क्लर्क को बुला कर सुरेश के नाम स्पष्टीकरण देने के लिए पत्र तैयार करने का आदेश दे दिया।

कुछ ही देर में सुरेश को पत्र मिल गया। उससे उसी दिन कार्यालय छोड़ने से पूर्व उत्तर देने को कहा गया था।

सक्सेनाजी की नीतियों के कारण कार्यालय के स्टॉफ में धीरे-धीरे रोष व्याप्त होता जा रहा था। लोगों के दिल में सक्सेनाजी के प्रति नफरत पैदा हो गई।

सक्सेनाजी के प्राने से यहां एक ओर फर्मचारियों के रेकार्ड खराब हो रहे थे. वहां दूसरी और कर्मचारियो में अपनी शादतों में सुधार भी कर लिया था। वे वक्त के पाबन्द होने लगे थे तथा इस बात की पूरी-पूरी चेष्टा करने लगे थे कि काम में कभी कोई शिकायत न रहे।

करीब छ: माह बाद ही सक्सेनाजी के प्रमोशन के आदेश मा गए। इसके साथ ही उनका स्थानान्तरण भी हो गया। उनके स्टॉफ को उनके प्रमोशन के कारण तो नहीं बल्कि स्थानान्तरण के कारण खुशी जरूर हुई। सक्सेनाजी को विदाई पार्टी भी देनी थी किन्तु अधिकांश व्यक्ति इस पक्षा में नहीं थे कि एक खराब अफसर को विदाई पार्टी दी जाए किन्तु अन्त में यह तय हुमा कि विदाई पार्टी देनी चाहिए। स्टॉफ द्वारा सक्सेनाजी को विदाई पार्टी न देने वाली बात उड़ती हुई उनके कानो तक भी पहुंच गई थी। उन्हें ज्ञात हुआ तो वे मुस्करा कर रह गए थे। वे यह जानते थे, कि वे जिस तरीके से कर्मचारियों से काम लेते थे, वह उन्हे पसन्द नही पाता था और यही कारण था कि उनके प्रति उनके दिलो मे नफरत पैदा हो गई थी। किन्तु उन्होंने इस बात की

परवाह नहीं की।

विदाई पार्टी वाले दिन सभी कर्मचारी इकट्ठे हुए। चाय व नाश्ते , का प्रोग्राम था। सक्सेनाजी अपनी बगल में एक मोटा-सा कागज़ों का पुलन्दा दबाए पाए । सभी ने खड़े होकर उन्हें झूठी ही सही, सम्मान दिया । मक्सेनाजी के मंठ जाने पर मभी बैठ गए।

सक्सेनाजी ने एक-एक कर्मचारी की और मुस्करा कर देखो। फिर उन्होंने कहा, ;मैं जानता हूं, कि आप लोग जो मुझे विदाई पार्टी दे रहे हैं, उससे माप खुश नहीं हैं। भाप खुश केवल इस बात से हैं कि मेरा यहां से द्रास्फर हो रहा है । फिर भी जाते हुए व्यक्ति को विदाई पार्टी तो मिलनी ही चाहिए। मासिर में माप लोगों के साथ इतने दिन रहा है। फिर मैं प्रमोशन पाकर जा रहा हूं। मापको इसी बात से खुश होना चाहिए। किन्तु मापं मझसे नाराज हैं तो केवल यही सोच कर कि मापसे बार-बार जवाब तलब करके और पापको बार-बार चेतावनियो देकर मैंने पापका रेकाई खराब किया है। किन्तु याद रखिए, कभी कोई अफसर अपने स्टॉफ का दुश्मन नहीं होता है। उसे कर्मचारियों का रेकार्ड और उनकी सी.प्रार. खराव करने में मजा नहीं पाता है। न इसमें उसका कोई न्यक्तिगत लाभ ही है। मैंने जो भी कुछ कार्यवाही की है, यह मात्र भाप लोगो की प्रादतें सुधारने के लिए की है। केवल इसलिए नहीं कि आपका रेकार्ड सराव किया जाए |

मैंने न तो किसी को सस्पेन्ड किया है, मौरन ही किसी का स्थानान्तरण किया है। स्थानान्तरणो के पक्ष में न तो कभी मैं रहा हूँ और न ही कभी रहूगा । इससे एक भोर तो कर्मचारी को परेशानी होती है, दूसरी मोर राजकीय कोष पर अनावश्यक भार पड़ता है। फिर ट्राम्फर समस्या का समाधान भी नही है। इससे बुराई बढ़ती है, घटती नहीं है। काम असन्तोपजनक होने पर ट्रास्फर किया जाए तो कर्मचारी निराशा व उत्साह भंग हो जाने के कारण प्रागे जाकर भी काम मेक तरह नहीं करेगा। मतः उचित यही है कि कर्मचारी को हर स्थिति में उसी स्थान पर रख कर उसकी आदतों में सुधार किया जाए। उसके दिल में अपने कार्य के प्रति निष्ठा व कर्तव्यपरायणता उत्पन्न की जाए सुरेश सोय रहा थे, कि पहले तो साहम ने लोगों का रेकाई पराम कर दिया और अब मोटे-मीठे बोल रहे हैं । यह मन ही मन उनक, उड़ाने लगा और इन्हें कोसने लगा। ___ सक्सेनाजी ने आगे कहा, ;मुझे इस बात को प्रसन्नता है कि मैंने यहां रह कर जो कुछ किया है, उसमें मुझे सफलता ही मिली है । धीरे. धीरे सभी व्यक्तियो की आदतें सुधरने लगी हैं और लोग अपना कार्य धक्त पर करने लगे है तथा शिकायतों के मौके भी नहीं के बराबर पाने लगे है । अच्छा होता कि करीब चार-पांच माह बाद मेरा स्थानान्तरण हुआ होता ताकि मैं यहा की स्थिति कुछ.और सुधार देता किन्तु कोई बात नही । मैं आप लोगों से यह आशा करूंगा कि माप स्वयं अपनी सुझबूझ से काम लेंगे और इस कमी को पूरा कर लेंगे।

सक्सेनाजी ने कागजों के पुलन्दे को खोलते हुए भागे कहा, मैं माप लोगों को एक बार फिर विश्वास दिला देना चाहता हूं कि आपका रेकार्ड खराब करने की मेरी चेष्टा कोई नहीं रही है। मेरे हाथ मे ये सभी कागज आप लोगो से मांगे गए स्पष्टीकरणों दी गई चेतावनियो की माफिस कापिया हैं जिन्हें मैंने आपकी पर्सनल फाइलों में नहीं जाने दिया है । चूंकि मेरा उद्देश्य सफल हो गया है अत: अब इनकी कोई भावश्यकता नही है।

यह कह कर सक्सैनाजी ने स्वयं अपने हाथों से सभी कागज फाड कर टुकड़े-टुकड़े कर दिए । सभी कर्मचारी आश्चर्य से देखते रह गए। उनके दिल सक्सेनाजी के प्रति उद्गारो से भर पाए । सक्सेनाजी ने हुस फर कहा, ;क्यों भई, प्रब तो आप लोग कुश हो न ?

सभी व्यक्ति खामोश रहे। उनके कण्ठ भवरुद्ध हो गए । सक्सेनाजी ने कहा, आप सभी इस बात का सकल्प लीजिए कि भाप अपना कार्य सदा निष्ठा व ईमानदारी से करेंगे और अपने कार्य व व्यवहार से मागे भाने वाले अधिकारियों को सन्तुष्ट रखेंगे।

सभी कर्मचारियों ने एक स्वर से सक्सेनाजी को माश्वासन दिया व प्रतिमा की कि ये उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलेंगे। 

अगले दिन कर्मचारियो ने सक्सेनाजी को मासूमों भरी विदाई दी।



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