ब्राह्मण, वेद एवं उपवेद


    वेद                  उपवेद                    ब्राह्मण
   ऋग्वेद                 आयुर्वेद                         ऐतरेय, कौषीतकी
   यजुर्वेद                धनुर्वेद                           तैतरीय, शतपथ
   सामवेद              गन्धर्ववेद                       पंचविश, षड़विश, जैमनीय, छन्दोग्य
   अथर्ववेद            शिल्पवेद                         गोपथ

۞    ऐतरेय ब्राह्मण में आठ मंडल है और पांच अध्याय है। इसे पंजिका भी कहा जाता है।
۞    ऐतरेय ब्राह्मण में राज्याभिषेक के नियम प्राप्त होते हैं।
۞    शतपथ ब्राह्मण में गंधार, शल्य, कैकेय, कुरू, पांचाल, कोसल, विदेह आदि का उल्लेख प्राप्त होता है।
۞    शतपथ ब्राह्मण ऐतिहासिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण ब्राह्मण ग्रंथ है।



आरण्यक:

۞    आरण्यक की रचना जंगलों में ऋषियों द्वारा की गयी थी।
۞    इसका प्रमुख प्रतिपाद्य विषय रहस्यवाद, प्रतीकवाद, यज्ञ और पुरोहिती दर्शन है।
۞    वर्तमान में सात आरण्यक उपलब्ध है।
۞    सामवेद और अथर्ववेद का कोई आरण्यक नहीं है।



उपनिषद्:

۞    उपनिषद् प्राचीनतम दार्शनिक विचारों का संग्रह है।
۞    इसमें मुख्य रूप से शाश्वत आत्मा, ब्रह्म, आत्मा-परमात्मा के बीच संबंध तथा विश्व की उत्पत्ति से संबंधित रहस्यवादी सिद्धान्तों का विवरण दिया गया है।
۞    कुल उपनिषदों की संख्या 108 है।
۞    सत्यमेव जयते मुण्डकोपनिषद से लिया गया है।
۞    मैत्रायणी उपनिषद् में त्रिमूर्ति और चार्तुआश्रम सिद्धान्त का उल्लेख है।



वेदांग और सूत्र साहित्य:

۞    वेदांग को स्मृति भी कहा जाता है क्योंकि यह मनुष्यों की कृति मानी जाती है।
۞    वेदांग सूत्र के रूप में है इसमें कम शब्दों में अधिक तथ्य रखने का प्रयास किया गया है।
۞    वेदांग की संख्या छः है-
     शिक्षा   -     स्वर ज्ञान
     कल्प   -     धार्मिक रीति एवं पद्धति
     निरुक्त -     शब्द व्युत्पत्ति शास्त्रा
     व्याकरण -     व्याकरण
     छंद    -     छंद शाज
     ज्योतिष -     खगोल विज्ञान
۞    सूत्र साहित्य वैदिक साहित्य का अंग न होने के बावजूद उसे समझने में सहायक है।
     कल्प सूत्र      -     ऐतिहासिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण
     श्रोत सूत्र -     महायज्ञ से संबंधित विस्तृत विधि-विधानां की व्याख्या
     शुल्क सूत्र     -     यज्ञ स्थल तथा अग्निवेदी के निर्माण तथा माप से संबंधित नियम इसमें हैं। इसमें भारतीय ज्यामिती का प्रारंभ रूप दिखाई देता है।
     धर्म सूत्र -     सामाजिक-धार्मिक कानून तथा आचार संहिता है।
     गृह्य सूत्र      -     पारिवारिक संस्कारों, उत्सवों तथा वैयक्तिक यज्ञों से संबंधित विधि-विधानों की चर्चा है।
     होत्रि   -     ऋग्वेद का पाठ करने वाला।
     उदगात्रि -     सामवेद की ऋचाओं का गान करने वाला।
     अध्वर्यु  -     यजुर्वेद का पाठ करने वाला
     रिन्वीध -     सम्पूर्ण यज्ञों की देख-रेख करने वाला।

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