रानी और नाक

रानी और नाक

 

तारीख : १६४० के आसपास

स्थान : हिमालय का गढ़वाल क्षेत्र

 

पृष्ठभूमि

अपने पति महिपत शाह की असमय मृत्यु के बाद रानी कर्णावती को गढ़वाल राज्य की बागडोर संभालनी पड़ी। राजकुमार पृथ्वी शाह केवल ७ साल का था।

शाहजहां - मुग़ल डाकुओं का सरदार - उसको यह सुनहरा मौका लगा कि इस्लामी हमलावरों के सदियों पुराने सपने को साकार कर दे। कई सदियों से हमलावर भारत पर हमला करते आ रहे थे ताकि वो मूर्ती पूजकों को मारकर इस्लामी शासन की स्थापना कर सकें। ठीक वैसे ही जैसे आजकल आईएसआईएस और अलकायदा के आतंकी करते हैं।

हमलावरों ने मैदानी इलाकों में हज़ारों मंदिरों को तोडा और उनको अपवित्र कर दिया। उन्होंने हिन्दुओं को मजबूर किया कि अन्य मंदिरों को ध्वस्त होने से बचाने के बदले में हिन्दू उन्हें जजिया कर दें और अपनी स्त्रियों को उनके पास भेजें । शाहजहां के समय तक लगभग सारे भारत ने मूर्ती भंजकों का अत्याचार देख लिया था। लेकिन हिमालय के पहाड़ अभी तक दुर्जेय थे। हर हमलावर को पता था कि गंगा नदी का स्रोत 'हिमालय' हिंदुओं के लिए क्या मायने रखता है। अयोध्या पहले ही नष्ट की जा चुकी थी, मथुरा और काशी उनके काबू में थीं, कश्मीर उनके कब्जे में था, बस अब हिमालय को तबाह करना बाकी था।

शाहजहां ने रानी कर्णावती की सुंदरता के बारे में भी सुन रखा था। वो अपनी

औरतखोरी के लिए प्रसिद्ध भी था। सन १६३१ में मुमताज महल की मृत्यु के बाद उसने अपनी हवस बुझाने के लिए अपनी ही बेटी जहांआरा से जबरदस्ती की थी। 

उसने मुमताज की बहन से भी शादी कर ली और दस हज़ार से अधिक औरतों का एक हरम तैयार किया। उसकी लत दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही थी - उस पर हर खूबसूरत औरत को अपने हरम में रखने का जुनून सवार था।

गढ़वाल उसके जैसे वहशी के लिए एक बेहतरीन मौका था। उसने तीस हज़ार सैनिकों की एक सेना भेजी, जिसके सेनापति नजाबत खान को स्पष्ट आदेश दिए गए कि गढ़वाल की राजधानी श्रीनगर पर कब्जा करो, रानी कर्णावती और राजघराने की सभी औरतों और बच्चों को मेरे पास ले आओ, सारे राजपूतों की हत्या कर दो और सारे मंदिर तोड़ दो।

जासूसों ने रानी को स्थिति की जानकारी दी। मुग़ल सेना हरिद्वार पहुंच चुकी थी। अगला पड़ाव लक्ष्मण झूला था। रानी ने अपने सलाहकारों के साथ एक गुप्त मंत्रणा की और एक योजना के साथ बाहर आईं।

आदेश दिए गए कि मुग़ल सेना का बिलकुल भी प्रतिरोध न किया जाए। नजाबत खान से बात करने के लिए लक्ष्मण झूला के पास बहुत सारा खाना और सोना लेकर एक दूत भेजा गया।

दूत ने नजाबत खान से अनुरोध किया कि उनके राज्य को बख्श दिया जाए। उसने रानी का समर्पण पत्र पढ़ाघाटी ने कभी भी खून-खराबा नहीं देखा है। हम आध्यात्मिक लोग हैं। हम लड़ने की हालत में नहीं हैं। अपनी जान की सलामती के लिए हम आत्मसमर्पण करना चाहते हैं।

हमारे आत्मसमर्पण की भेंट स्वरुप आप यह भोजन और जवाहरात ग्रहण करें। हम आपको दस लाख रुपए और पांच हज़ार चुनी हुई खूबसूरत औरतें भेजेंगे। 

मैं खुद इस सबके साथ पंद्रह दिन में आपके पास समर्पण करने आउंगी। यदि मेरी जिंदगी के बदले इतनी जानें बच सकती हैं तो मुझे बलिदान देने में ख़ुशी ही होगी।

इतनी आसान जीत देख कर नजाबत बहुत उत्साहित था। वो तुरंत मान गया। एक बार रानी को अपने कब्जे में लेने के बाद इन पहाड़ों को लूटने से उसे कौन रोकेगा! मुग़ल सेना को पहाड़ों में रहने का अनुभव नहीं था जिसकी वजह से वह बहुत थक भी गई थी। सेना को इस समय आराम की जरूरत थी।

उसने इस खबर को तुरंत एक संदेशवाहक के साथ शाहजहां के पास रवाना कर दिया।

पंद्रह दिन बीत गए। रानी का दूत फिर से और भोजन और जवाहरात लेकर आया। उसने कुछ और दिनों की मोहलत मांगी, कहा गया कि वे मुग़ल सेना के लिए सबसे सुन्दर कुंवारियों का चयन कर रहे हैं, जिसमें समय लग रहा है।

नजाबत ने गुस्सा दिखाया, लेकिन मान गया। उसकी सेना भी अभी लड़ाई को तैयार नहीं थी - ठंडे पहाड़ी मौसम ने उनका हाजमा ख़राब कर दिया था।

एक हफ्ता और निकल गया। इस बार कोई दूत नहीं आया। एक दिन और गुजरा

और फिर एक और दिन। फिर भी कोई संदेश नहीं। खाने पीने की सामग्री भी खत्म हो चली थी। सिपाहियों की सेहत बिगड़ने लगी। उनके खेमे से पचास हज़ार सिपाहियों की उलटी और दस्त की वजह से बदबू उठने लगी थी। नजाबत अब गुस्से से भर उठा।

 


परिस्थिति

नजाबत ने अपने सैनिकों को कूच करने का आदेश दिया। उसकी टुकड़ी को तैयार होकर पहाड़ों पर चढ़ने में दिक्कत हो रही थी। कई जगहों पर रास्ते पतले थे। सेना को छोटे हिस्सों में बांटना पड़ा, पीछे की टुकड़ी को इंतज़ार करना पड़ता जब तक आगे के सैनिक थोड़ा बढ़ नहीं जाते, अचनाक से उन पर हमला हुआ। पूरी तरह अफरातफरी मच गई। सिर कटकर लुढ़कने लगे। राजपूतों ने हर रास्ते पर हमला बोल दिया था। जैसे ही मुग़ल सेना ने भागना शुरू किया। 

उन्होंने देखा कि रास्ते में कांटे ही कांटे फैले हुए थे और ऊपर पहाड़ से भारी चट्टानें लुढ़क कर गिरने लगीं। सारे मुग़ल सैनिक मारे गए। हर रास्ते पर एक ही सैनिक जिन्दा छोड़ा गया। उन सैनिकों की नाक काट दी गई। सारे नकटे सैनिकों को एक ही संदेश के साथ भेजा गयातुम्हारे सामने दो ही विकल्प हैं या तो मारे जाओ या हमें अपनी नाक काटने दो।

 

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आगे क्या हुआ?

नजाबत को अब समझ में आया कि क्या हुआ था। खाने में जहरीला पदार्थ मिला हुआ था। राजपूतों ने युद्ध की तैयारी के लिए समय लिया था। उसको मूर्ख बनाया गया था और मुग़ल सेना हिमालय की पहाड़ी जमीन पर लड़ाई के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी।

अब केवल एक ही विकल्प बचा था। वही जो हर जिहादी के पास ऐसी स्थितियों के लिए होता है - अपनी जान बचाकर भागो! उसने बचे हुए सैनिकों को वापस लौटने के आदेश दिए। वो जानता था कि शाहजहां उसको छोड़ेगा नहीं लेकिन वो यह भी जानता था कि अब यदि उसने वहां पहाड़ में कोई चालाकी की तो मौत निश्चित है।

टुकड़ी पीछे हटी लेकिन देखा कि वापसी का रास्ता भी बंद है। केवल पगडंडी वाले तीन रास्ते ही बचे हैं। नाक कटे सिपाहियों ने बताया कि आगे क्या होने वाला है - कांटे, लुढ़कते पत्थर, सिर कलम और ज्यादा नाकों का कटना।

सैनिकों में घबराहट फ़ैल गई। बहुत से उन पतले रास्तों से ही निकल भागे। एक भगदड़ मची और फिर पत्थर वर्षा, तीरों की मार और सिर कटने का सिलसिला शुरू हो गया।

 


और तब

नजाबत खान ने आत्म समर्पण कर दिया। राजपूतों ने मुग़ल सेना के सारे हथियार छीन लिए। सुंदर रानी कर्णावती, नजाबत खान के सामने प्रकट हुईं।

उन्होंने शाहजहां के लिए लिखा गया एक पत्र लिफ़ाफ़े में डाल कर नजाबत खान के गले में लटका दिया। एक सिपाही ने रानी को तलवार दी। इससे पहले नजाबत खान कुछ समझ पाता उसकी नाक कटकर जमीन पर गिर पड़ी। एक सिपाही ने उस कटी हुई नाक को उठाकर उसी लिफ़ाफ़े में रख दिया।

जय मां गंगेका उद्घोष करती हुई रानी वहां से चली गईं।

राजपूतों ने बीस सिपाहियों को छोड़कर बाकी सबको मार दिया।

उन बचे हुए बीस सैनिकों की नाक काट दी गई। फिर उन सिपाहियों और नजाबत खान को अपने कपड़े उतारने को कहा गया। एक सिपाही को लक्ष्मण झूला तक पहुंचने का नक्शा दे दिया गया। 

राजपूत सेना के सेनापति ने नजाबत खान के पिछवाड़े पर एक लात मारी और बोलादफा हो जाओ।

 

परिणाम

नजाबत कभी आगरा नहीं पंहुचा। कुछ लोग कहते हैं कि उसने आत्महत्या कर ली। कुछ लोग कहते हैं कि उसके सिपाहियों ने ही उसे मार डाला। लेकिन एक भारी लिफाफा शाहजहां के हरम में जरुर पहुंचा। उस में २१ कटी हुई नाकें थीं।

उस चिट्ठी में लिखा थाहमने तुम्हारी सेना से लक्ष्मण झूले पर मुलाकात की। लक्ष्मण ने सूर्पनखा की नाक काटी थी जो कि रावण की बहन थी। हम हर उस मुग़ल की नाक काटेंगे जो गढ़वाल में दिखेगा।

अगर आगे तुमने कोई दुस्साहस किया तो हम तुम्हारे हरम का रास्ता जानते हैं और तुम्हारी नाक का नाप भी हमें पता है।"

शाहजहां ने अपनी सुरक्षा बढ़ा दी थी। फिर भी उसका डर कम नहीं हो रहा था। उसने चोरी-छिपे कुछ हमले किए गढ़वाल पर। लेकिन प्रत्येक मुग़ल अपनी नाक कटवाकर वापस आता था। जब आरिज़ खान की भी हालत वही हुई जो नजाबत खान की हुई थी तो शाहजहां ने अपनी राजधानी आगरा से हटाकर दिल्ली कर ली। वहां उसने यमुना नदी के किनारे कब्ज़ा किए हुए किले में डेरा बनाया ताकि वो अपनी जान बचा सके।

उसके बेटे औरंगज़ेब ने भी यही दुस्साहस करने का प्रयास किया था और उसको भी हर बार वही उपहार मिला था- अपने सिपाहियों और सेनापति की कटी हुई नाक।

रानी कर्णावती 'नकटी रानी' के नाम से प्रसिद्ध हो गईं। 

किसी मुग़ल की दुबारा हिम्मत नहीं हुई गढ़वाल पर हमला करने की बल्कि इसके उलट उन्होंने मुग़लों से कई घाटियां और मैदानी इलाके वापस छीन लिए। रानी अपने नवीनतापूर्ण विकास कार्यों के लिए प्रसिद्ध थीं और गढ़वाल में बड़ी श्रद्धा और सम्मान के साथ याद की जाती हैं। मुग़ल आज समाप्त हो चुके हैं।

 

और अब

रानी ने आतंकवादियों से निपटने के लिए बिलकुल सही उदाहरण प्रस्तुत किया। अब समय आ गया है कि हम उनका अनुकरण करें और देश और दुनिया को बचाएं।

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